जब बात आती है मानव सभ्यता की अद्भुत उपलब्धियों की, तो इतिहास के पन्नों से कुछ चुनिंदा नाम उभरकर सामने आते हैं। ये हैं दुनिया के सात अजूबे, जो सदियों से इंसान के दृढ़ संकल्प, इंजीनियरिंग कौशल और कलात्मक प्रतिभा के प्रतीक बने हुए हैं। यह दुनिया के सात अजूबे नाम की केवल एक ही सूची नहीं है। सात अजूबे 2 सूचियों में आते हैं जो निम्नलिखित हैं:
1. प्राचीन विश्व के सात अजूबे: इस सूची को प्राचीन यूनान के इतिहासकारों द्वारा बनाया गया था और इसमें 7 अजूबे शामिल थे इसमें से ज्यादातर तो समय के साथ नष्ट हो चुके हैं।
2. नए सात अजूबे: यह सूची 21वीं सदी में वैश्विक मतदान के आधार पर बनाई गई थी और इसमें 7 अजूबे शामिल हैं जो आज भी मौजूद हैं।
प्राचीन विश्व के सात अजूबे प्राचीन यूनानी इतिहासकारों के द्वारा शामिल किए गए थे जिनमें से दुर्भाग्यवश कुछ समय के साथ नष्ट हो चुके हैं। नए सात अजूबे 21वीं शताब्दी में वैश्विक मतदान के आधार पर शामिल किए गए हैं जो आज भी शान से खड़े हुए हैं। बेशक इन दोनों सूचियों में शामिल अजूबे दुनिया के अलग अलग युगों और अलग अलग जगह से आते हों लेकिन इनमें एक समानता यह है की यह सभी मानव जाती की असीम क्षमताओं को दर्शाते हैं।
इसलिए, जब आप “दुनिया के सात अजूबे” के बारे में बात कर रहे हैं, तो यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है कि आप किस सूची का वर्णन कर रहे हैं।
सदियों से, इन संरचनाओं ने इतिहासकारों और लोगों को मंत्रमुग्ध किया है। तो आइए, आज हम दुनिया के सात अजूबों की यात्रा पर निकलते हैं, हर एक की अनोखी कहानी में गोता लगाते हुए और उनकी भव्यता का अनुभव करते हुए।
आधुनिक युग के सात अजूबे
1. ताजमहल(Taj Mahal) (भारत):
प्रेम का एक जीता जागता प्रतीक, ताजमहल एक सफ़ेद संगमरमर की प्रतिमा है जिसे मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी बेग़म मुमताज महल की याद में बनवाया था। इसके सुन्दर बगीचों, मनमोहक गुम्बद और जटिल नक्काशी इसे दुनिया की बेहतरीन इमारतों में से एक बनाती है।
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2. पेट्रा(Petra) (जॉर्डन):
जॉर्डन के रेगिस्तान में छिपा, गुलाबी बलुआ पत्थर से बना पेट्रा एक प्राचीन नबातियन शहर है। इसके मंदिर, मकबरे और खजाने इसकी अद्भुत इंजीनियरिंग प्रतिभा और कलात्मक कौशल का प्रदर्शन करते हैं। पेट्रा प्राकृतिक सौंदर्य और मानव इतिहास का एक अद्भुत संगम है।
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3. चीन की दीवार (ग्रेट वॉल ऑफ चाइना):
यह दुनिया की सबसे बड़ी मानव-निर्मित संरचना है। जिसे चीन के प्राचीन साम्राज्यों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। इसकी लम्बाई लगभग 21,000 किलोमीटर है। चीन की दीवार को बनाने में कऱीब 2000 वर्षों का समय लगा। इसका निर्माण वसंत और शरद ऋतु (770-476 ईसा पूर्व) और युद्धरत राज्यों (475-221 ईसा पूर्व) तक चला। इसको “ड्रैगन की रीढ़” के रूप में भी जाना जाता है, जो चीन की रक्षात्मक शक्ति का प्रतीक है।
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4. क्राइस्ट द रिडीमर(Cristo Redentor) (ब्राजील)
क्राइस्ट द रिडीमर, ईसा मसीह की एक विशाल प्रतिमा है जो ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो शहर में स्थित है। इसकी ऊंचाई 39.6 मीटर (130 फीट) है। ये दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है जो कोर्कोवाडो पर्वत की चोटी पर स्थित है, वहाँ से पूरे शहर का नज़ारा दिखता है।
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5. माचू पिच्चू(Machu Picchu) (पेरू)
माचू पिच्चू, प्राचीन इंका सभ्यता का ऐतिहासिक स्थल है जो पेरू में स्थित है। जिसका अर्थ “पुरानी चोटी” होता है। उरुबाम्बा घाटी के ऊपर एक पहाड़ पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 2,430 मीटर है। माचू पिच्चू को “इंकाओं का खोया शहर” भी कहा जाता है।
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6. चिचेन इट्ज़ा(Chichén Itzá), मेक्सिको
चिचेन इट्ज़ा, मेक्सिको के युकाटन प्रायद्वीप पर स्थित एक प्राचीन माया स्थल है। चिचेन इट्ज़ा का नाम माया शब्द “चीचेन” और “ईजा” से लिया गया है। पिरामिड ऑफ़ कुकूलकान इसके प्रमुख आकर्षण में शामिल हैं। चिचेन इट्ज़ा अपने खगोलीय संरेखण, अद्भुत वास्तुकला, और रहस्यमयी इतिहास के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
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7. कोलोसियम (Colosseum), रोम
कोलोसियम, जिसे रोमन में “एम्फीथिएटर फ्लावियस” के नाम से भी जाना जाता है, इटली में स्थित है यह रोमन वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है कोलोसियम का निर्माण 70 ईसा पूर्व में शुरू हुआ और 80 ईसा पूर्व में समाप्त हुआ। इसके निर्माण में लगभग 8 वर्ष का समय लगा। यह एम्फीथिएटर रोमन के मनोरंजन का प्रमुख केंद्र था, यहाँ पर जानवरों के शिकार, डियेटोरियल लड़ाई और अन्य सार्वजनिक मनोरंजन के कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे।
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प्राचीन दुनिया के सात अजूबे
1. गीज़ा के पिरामिड (मिस्र)
गीज़ा के पिरामिड को 1979 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया। गीज़ा के पिरामिड जिसे ‘खूफू का पिरामिड’ के नाम से भी जाना जाता है को प्राचीन मिस्र के फिरौन खूफू के शासनकाल में बनाया गया था। लगभग 4,500 साल से खड़ा यह पिरामिड मिस्र की संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक ही नहीं बल्कि उस समय की इंजीनियरिंग और वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण भी है।
2. बेबीलोन के झूलते बाग़ (इराक)
6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बने “बेबीलोन के झूलते बाग़” को 2019 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया। यह लगभग 2,600 साल पुराने माने जाते हैं और 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व में नष्ट हो गए थे। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बेबीलोन के झूलते बाग़ का वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था जबकि कुछ इतिहासकारों का कहना है कि वे वास्तविक थे और यह बेबीलोन में नहीं बल्कि नीनवे शहर में स्थित थे।
3. ओलंपिया में जियस की मूर्ति (यूनान)
435 ईसा पूर्व में बनी ओलंपिया में जियस की मूर्ति लगभग 2,400 साल पुरानी थी और 5वीं शताब्दी ईस्वी में भूकंप के बाद यह नष्ट हो गई थी। प्रसिद्ध मूर्तिकार फ़ीडियस द्वारा इस मूर्ति का निर्माण किया गया। 1989 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया। यह यूनान की सबसे बड़ी मूर्ति थी।
4. आर्टेमिस का मंदिर (तुर्की)
आर्टेमिस का मंदिर, प्राचीन विश्व के सात अजूबों में से एक है, जो तुर्की के इफिसुस शहर में स्थित था। इसे 550 ईसा पूर्व के आसपास बनाया गया था। यह लगभग 2570 साल पुराना है। हेरोस्ट्रेटस नामक व्यक्ति ने 356 ईसा पूर्व में आर्टेमिस का मंदिर में आग लगा दी और 262 ईसा पूर्व में गोथों ने इसे लूटा और नष्ट कर दिया। आर्टेमिस का मंदिर 2014 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।
5. मौसोलस का मकबरा (तुर्की)
मौसोलस का मकबरा लगभग 350 ईसा पूर्व में बनाया गया था। इसे माउसोलियम के नाम से भी जाना जाता है। यह मकबरा 1402 में भूकंप और हमलों के कारण नष्ट हो गया। 1984 में यूनेस्को ने इसको विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल किया। मौसोलस का मकबरा लगभग 135 फीट ऊँचा था।
6. रोड्स का कॉलॉसस (ग्रीस)
रोड्स की विशालमूर्ति, जिसे “रोड्स का कॉलॉसस” के नाम से भी जाना जाता है, लगभग 280 ईसा पूर्व में बनी थी। लगभग 33 मीटर (108 फीट) ऊँची रोड्स की विशालमूर्ति, रोड्स द्वीप पर स्थित थी। कांस्य की बनी यह विशाल मूर्ति सूर्य देवता हेलिओस को समर्पित थी। रोड्स का कॉलॉसस को 1988 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में घोषित किया गया था।
7. ऐलेक्जेंड्रिया का रोशनीघर (मिस्र)
मिस्र के महान शहर ऐलेक्जेंड्रिया में स्थित, ऐलेक्जेंड्रिया का रोशनीघर, जिसे “फारोस के चमकते आँगन” के नाम से भी जाना जाता है लगभग 2400 साल पुराना है। इसको बनाने में 20 साल का समय लगा। 280 ईसा पूर्व में इसकी नींव रखी गई और 247 ईसा पूर्व में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ। 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व में भूकंप से रोशनीघर नष्ट हो गया। UNESCO ने इसे 1984 में अपनी विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया।